प्रधानमंत्री ने जामनगर और जयपुर में आयुर्वेद संस्थान राष्ट्र को समर्पित किए
नई दिल्ली:- प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज कहा कि समूची मानवता के कल्याण को समर्पित आयुर्वेद भारत की विरासत है। आयुर्वेद दिवस के अवसर पर दो अत्याधुनिक आयुर्वेदिक संस्थानों का वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए लोकार्पण करते हुए मोदी ने कहा कि प्रत्येक भारतीय के लिए यह बात बडे प्रसन्नता की है कि हमारे परंपरागत ज्ञान को अब विदेशों में भी अपनाया जाने लगा है। ये संस्थान हैं – गुजरात के जामनगर में आयुर्वेद अध्ययन और अनुसंधान संस्थान और राजस्थान के जयपुर में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान। उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को परंपरागत चिकित्सा पद्धति का वैश्विक केंद्र स्थापित करने के लिए चुना है।
मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि आयुर्वेद के ज्ञान को ग्रंथों, शास्त्रों और नुस्खों के दायरे से बाहर निकाला जाना चाहिए और इस प्राचीन ज्ञान को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार ढाला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में आयुर्वेद पर अनुसंधान कार्य हो रहा है और 21वीं सदी के आधुनिक विज्ञान से प्राप्त ज्ञान को प्राचीन ज्ञान के साथ समन्वित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुर्वेद आज सिर्फ वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति नहीं रह गया है बल्कि यह देश की स्वास्थ्य नीति का प्रमुख आधार बन गया है। उन्होंने बताया कि लेह में राष्ट्रीय सोवा-रिगपा संस्थान बनाया जा रहा है जिसमें स्थानीय सोवा-रिगपा चिकित्सा पद्धति के बारे में अध्ययन और अनुसंधान की सुविधा होगी।
दोनों आयुर्वेदिक संस्थानों का दर्जा बढाये जाने पर उन्हें शुभकामनाएं देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अब उन पर और अधिक जिम्मेदारी आ गई है। प्रधानमंत्री ने आशा व्यक्त की कि ये संस्थान अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार, आयुर्वेद का पाठ्यक्रम तैयार करेंगे। उन्होंने शिक्षा मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से भी आग्रह किया कि वे आयुर्वेद भौतिकी और आयुर्वेद रसायन शास्त्र जैसी शाखाओं में भी शिक्षण-प्रशिक्षण की संभावनाओं का पता लगाएं।
मोदी ने स्टार्ट-अप उद्यमों और निजी क्षेत्रों से भी आग्रह किया कि वे वैश्विक रूझानों और मांग का अध्ययन कर आयुर्वेद के क्षेत्र में भागीदारी सुनिश्चित करें। उन्होंने कहा कि भारतीय चिकित्सा प्रणाली से संबंधित राष्ट्रीय आयोग और राष्ट्रीय होम्योपैथिक कमीशन की स्थापना संसद के पिछले सत्र में पारित कानून के तहत की गई है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आयुर्वेद के विकास के लिए समन्वित दृष्टिकोण अपनाने की बात कही गई है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पीछे बुनियादी सोच यह है कि आयुर्वेदिक शिक्षा के अंतर्गत ऐलोपैथी के तौर-तरीकों का ज्ञान भी अनिवार्य रूप से दिया जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना के प्रकोप के दौरान आयुर्वेद उत्पादों की मांग दुनियाभर में बडी तेजी से बढी है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक उत्पादों का निर्यात इस साल सितंबर में पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले 45 प्रतिशत बढा है। श्री मोदी ने कहा कि हल्दी और अदरक जैसी चीजों का निर्यात काफी बढा है क्योंकि इन्हें रोग-प्रतिरोध क्षमता बढाने वाला माना जाता है। इससे यह साबित हो जाता है कि दुनियाभर में आयुर्वेद उपचार और भारतीय जडी – बूटियों में लोगों का भरोसा बढा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया के प्रतिष्ठित चिकित्सा शोध-पत्रों में आयुर्वेद की नई संभावनाओं के बारे में शोध-पत्र छप रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में लोगों का ध्यान आयुर्वेद के उपचार पर ही केंद्रित नहीं था बल्कि देश-विदेश में आयुष से संबंधित उच्च स्तरीय अनुसंधान भी हुआ है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत आज एक ओर टीकों के परीक्षण में लगा है तो दूसरी ओर वह कोविड से निपटने में आयुर्वेदिक अनुसंधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग भी बढा रहा है। उन्होंने कहा कि इस समय नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान सहित एक सौ से अधिक संस्थानों में आयुर्वेद पर अनुसंधान हो रहा है।
इस संस्थान ने दिल्ली पुलिसकर्मियों की रोग-प्रतिरोध क्षमता के बारे में एक अनुसंधान किया है जिसमें 80 हजार पुलिसकर्मियों ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि यह संभवत: दुनिया का सबसे बडा अनुसंधान कार्य था और इसके नतीजे उत्साहजनक रहे हैं। श्री मोदी ने कहा कि आने वाले दिनों में कुछ और अंतरराष्ट्रीय परीक्षण भी शुरू किए जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आयुर्वेदिक औषधियों और जडी-बूटियों पर विशेष जोर देने के साथ-साथ शरीर की रोग-प्रतिरोध क्षमता बढाने वाले पौष्टिक आहार पर भी अनुसंधान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्र और गंगा नदी के किनारे रहने वाले किसानों को मोटे अनाज और जैविक उत्पादों को उगाने को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि आयुष मंत्रालय समूचे देश के लिए एक विस्तृत योजना बना रहा है जिससे विश्वभर में आरोग्य को बढावा देने में देश का योगदान बढेगा। उन्होंने कहा कि हमारे विशेषज्ञ को किसानों की आमदनी बढाने के उपाय खोजने चाहिए। श्री मोदी ने बताया कि कोविड महामारी के प्रकोप के बाद अश्वगंधा, गिलोय और तुलसी जैसी जडी -बूटियों के दाम काफी बढ गए हैं। किसान इनकी खेती करके फायदा उठा सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने कृषि मंत्रालय, आयुष मंत्रालय और अन्य विभागों से आग्रह किया कि वे भारत में पैदा होने वाली कई जडी-बूटियों की उपयोगिता के बारे में लोगों में जागरूकता जगाएं। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद से संबंधित समूचे पारिस्थितिकीय तंत्र के विकास से स्वास्थ्य और आरोग्य से जुडे पर्यटन को बढावा मिलेगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस अधनोम गेब्रेयेसस ने इस अवसर पर एक वीडियो संदेश भेजा है और परंपरागत दवाओं को बढावा देकर स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की वचनबद्धता की प्रशंसा की है।
आयुष मंत्री पदनाईक, राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्रा, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत और मुख्यमंत्री विजय रूपानी इस अवसर पर उपस्थित थे।