बटईकेला गौठान में जैविक खाद निर्माण के साथ ही तैयार कर रही है विभिन्न प्रकार के उत्पाद
773 क्विन्टल गोबर की खरीदी करते हुए 1 लाख से अधिक राशि का किया गया है भुगतान
महिलाओं ने लाकडाउन के दौरान प्रशिक्षित करने एवं
रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश सरकार एवं जिला प्रशासन को दिया धन्यवाद
जशपुरनगर:- छत्तीसगढ़ शासन की महत्वकांक्षी नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी योजना के अंतर्गत विकासखंड कांसाबेल के बटईकेला गौठान में गोबर से जैविक खाद निर्माण के साथ ही विभिन्न प्रकार के उत्पाद तैयार किये जा रहे है। गौठान से जुड़े अम्बिका स्वसहायता समूह की महिलाओं द्वारा गौठान में रोजगार मूलक कार्यो का संचालन किया जा रहा है। गौठान में महिलाओं द्वारा गोबर से वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने का कार्य प्रारंभ कर दिया गया है साथ ही महिलाओं द्वारा जैविक खाद घन जीवामृत एवं जैविक कीटनाशक का निर्माण किया गया है।
गौठान से जुड़े यंग प्रोफेशनल कृषि स्पेशिलिस्ट बलराम सोनवानी ने बताया कि लाॅकडाउन के समय इन महिलाओं के समक्ष रोजगार की विकट समस्या उत्पन्न हो गई थी। ऐसे में जिला प्रशासन द्वारा गौठानो में रोजगार मूलक एवं आजीविका संवर्धन जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयास किया गया है।
उन्होने बताया कि गौठान में हरेली के अवसर से गोधन न्याय योजना का शुभांरभ करते हुए गोबर खरीदी किया जा रहा है। जिनका उपयोग कर स्वसहायता समूह की महिलाएं जैविक खाद निर्माण कर रही है। अब तक गौठान में 111 पशुपालकों द्वारा 773 क्विन्टल गोबर की खरीदी की गई है एवं गौठान में अब तक पंजीकृत गोबर विक्रेताओं को 1 लाख से अधिक विक्रय राशि का भुगतान भी सहकारी समितियों द्वारा हितग्राहियों को सीधे उनके खाते में कर दिया गया हैै।
सोनी ने बताया कि गौठान में अब तक 8 क्विंटल जैविक खाद का निर्माण किया गया है। जिसका विक्रय सहकारी समितियों के माध्यम से सरकारी संस्थाओं को किया जाएगा।
सोनवानी ने बताया कि गोधन न्याय योजना के प्रारंभ होने से पूर्व लाॅकडाउन के दौरान 12 सदस्यीय अम्बिका समूह की महिलाओं द्वारा गोबर से बने जैविक खाद घन जीवामृत का निर्माण किया गया है।
सोनवानी ने बताया कि घन जीवामृत के उपयोग से भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है। खेती की तैयारी के समय खेत में घन जीवामृत डालकर जुताई किया जाता है। ये पौधों को सूक्ष्म पोषक तत्व प्रदान करने के साथ ही भूमि में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणुओं को सक्रिय करते है। एक एकड़ कृषि भूमि में लगभग 250 किलोग्राम घन जीवामृत का उपयोग किया जाता है।
लाॅकडाउन से अब तक महिलाओं द्वारा लगभग 5 क्विन्टल घन जीवामृत का उत्पादन किया गया है। जिसका उपयोग घरेलू कार्यो के साथ ही गौठान में चारागाह विकसित करने एवं पौध रोपण में किया गया है।
अम्बिका समूह से जुड़ी एवं पशु सखी शकुंतला पैंकरा ने घन जीवामृत के निर्माण के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि घन जीवामृत के निर्माण में लगभग 10-15 दिन का समय लगता है। घन जीवामृत के निर्माण 100 किलोग्राम गोबर में 2-2 किलोग्राम गुड़, चना बेसन, दीमक मिट्टी एवं 2 लीटर गोमूत्र को आपस में अच्छे से मिलाकर किया जाता है। तैयार मिश्रण का छोटे-छोटे कण्डे बनाकर छायाकिंत स्थान पर रखकर सुखाया जाता है।
शकुंतला ने बताया कि उनकी महिला समूह द्वारा विभिन्न प्रकार के जैविक कीटनाशक उत्पाद भी तैयार किया है। जिसके अंतर्गत नीमास्त्र एवं बेसरम पत्ती की दवाई सहित अन्य उत्पाद शामिल है। जैविक कीटनाषक का उपयोग धान एवं सब्जी के कीट को मारने के लिए किया जाता है। यह कीटनाशी इकोफ्रेंडली होता है। यह केवल फसलों को हानि पहुॅचाने वाले कीटों को मारता है एवं इसका किसी भी प्रकार का हानिकारक प्रभाव फसल, मृदा, जल, वातावरण तथा मानव शरीर पर नहीं पड़ता है। यह फसलों की अच्छी उत्पादन में भी सहायक है।
अम्बिका समूह की महिलाओं ने लाॅकडाउन की विषम परिस्थिति के दौरान महिलाओं को विभिन्न उत्पाद निर्माण के लिए मार्गदर्शन प्रदान कर उन्हें प्रशिक्षित करने एवं रोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश सरकार एवं जिला प्रशासन को धन्यवाद दिया है।